Sunday, December 07, 2008

चयन नहीं चुनाव चाहिए :


राजनितिक दलों के हित में है की प्रत्याशियों का चयन नहीं चुनाव करें

हाल ही में हुए ६ राज्यों के चुनावों को सेमीफाइनल भी कहा जा राह है क्योंकि वो कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव का रुझान दर्शाएंगे । इन चुनाव से दो बातें साफ़ तौर से उभर कर आई हैं। पहली ये की निर्वाचन आयोग के कड़े रवैये से चुनाव में पैसे और बाहुबल का उपयोग कम हुआ है, जिसके कारण चुनाव शान्ति पूर्ण और साफ़ सुथरे ढंग से हुए। दूसरी बात ये की सभी मुख्य दलों के अन्दर के झगडे जनता के सामने आ गए।

चुनाव आयोग के कड़े रुख का नतीजा है की शहर की दीवारें साफ़ हैं, ट्रेफ्फिक जाम हैं लगे, गुंडागर्दी नहीं हुई और ना ही शराब, साड़ी इत्यादी देकर मतदाता को करीदा गया। आम आदमी का जीवन सामान्य रूप से चलता रहा।


मुख्या दलों की अंदरूनी लडाई के कारण आखरी समय पे नेताओं का दल बदलना या निर्दलिये का मैदान में उतरना सभी राज्यों में देखा गया। इसका मुख्या कारण है की दल उम्मेदवार उसी को बनते हैं जीके पास पैसा या पहुँच है। यह बात राहुल गाँधी ने भी स्वीकारी है। इसका असर मार्गरेट अल्वा जी वरिष्ट नेता पर भी देखा गया, जिनके परिजनों को कर्णाटक में उम्मेदवारी नहीं मिली। ये बीमारी बी.जे.पी में भी है। सुषमा स्वराज के बनाये गए उम्मीदवार मध्य प्रदेश में अपने ही दल के बागी नेता से हार गए। स्थानीय टी.व्ही. चैनल अंदरूनी लडाई को छुपने नहीं देते। इससे नेताओ के कुकर्म भी उजागर हो जाते हैं। एक तरफ़ ये जनता के लिए अच्छा है तो दूसरी तरफ़ पार्टी मुख्यालय में बैठे वरिष्ठ नेताओं के लिए सर दर्द है। इसका एक ही इलाज है, की उम्मीदवारों का चयन दिल्ली में बैठे नेता न करें वरन, निर्वाचन क्षेत्र के कार्यकर्ता चुनाव के दुआर करें।

सुविधा के लिए हम इसे 'पार्टी चुनाव ' कह सकते हैं, जो की आम चुनाव के २ महीने पहले होने चाहिए। इन चुनाव में केवल दल के कार्यकार्ताअथवा सदस्यों को ही मत का आधीकार होगा और सिर्फ़ उस क्षेत्र के ही मतदाता होंगे। जो भी नेता अपनेआप को आम चुनाव में जीतने के काबिल समझते हैं, वे उम्मेदवार बन सकते हैं। फिर वो पार्टी सदस्यों के बीच अपना प्रचार प्रसार कर के उनके मत लेने की कोशिश करें। ये अमेरिका में होने वाली प्राईमरी प्रक्रिया के तरफ़ ही है। साफ़ बात है की जो उमीदवार अपने ही दल के सदस्यों के मत नहीं प्राप्त कर सकता वो जनता के मत क्या प्राप्त करेगा। जिसने अपने दल में अधिकतम मत प्राप्त किए हैं वो ही पार्टी को जीता सकता है। पार्टी को उसे ही उम्मेदवार बना होगा।

आप कहेंगे की आज के दौर में जहाँ निहित स्वार्थ की रखा के लिए तंत्र और चुनाव प्रणाली को तोड़ मरोड़ दिया जाता है वहां 'पार्टी चुनाव ' कौन करना चाहेगा। निम्नलिखित कारणों से 'पार्टी चुनाव ' अपनाना मुख्या की हित में है:

मुख्या दलों को अच्छे से पता है की अंदरूनी इसे के चलते चुनाव जीतना बहुत मुश्किल हो जाता है। पार्टी के नेता एवं सदस्य ये कहकर दल बदल लेते हैं की उनकी सुनवाई नहीं होती। इससे छोटे दलों को फायदा मिलता है जो की बड़े दलों का वोट काटते हैं। 'पार्टी चुनाव ' से सभी को अपनी बात कहने का अवसर मिलेगा और उन्हें सुनवाई नहीं होने की शिकायत नहीं होगी।
मुख्या दलों में कार्यकर्ताओं में ये भावना आ रही है की उम्मेदवार का चयन अनुचित ढंग से किया जाता है। जिसमे धन, बाहुबल, और बड़े नेताओं से करीबी होना आवश्यक होता है। इसीसे दलों की सदस्यता भी कम होती जा रही है। 'पार्टी चुनाव ' से कार्यकर्ताओं में ये भावना नहीं रहेगी।

चुनाव के पूर्व असंतोष के कारण नेता एवं कार्यकार्ता दल बदल लेते हैं। इसके कारण मत तो जाते ही हैं, और पार्टी को भी शर्मसार होना पड़ता है और वरिष्ठ नेता की छवि ख़राब होती है। इन बागी नेताओं को लगता है की कोई चोटी पार्टी इन्हे बड़ा पद देगी और इनका भविष्य उज्जवल होगा। जैसा की महाराष्ट्र में नारायण राणे, छगन भुजबल के साथ हुआ। अगर 'पार्ट चुनाव ' होता है तो बागी नेता का सही मूल्य सबके सामने आ जाएगा। फिर उन्हें बदलने का कोई कारण नहीं होगा और जीस दल में वो जन चाहते हैं उसे भी उनका सही मूल्य पता होगा।

'पार्टी चुनाव' कारण का एक कारण ये भी है की जो नई पढ़ीके मतदाता हैं वे शिक्षित और विचार विमर्श चाहते हैं। उनको रुझान का तरीका है की उन्हें अपनी बात कहने का अवसर दिया जाए। वे लडाई झगडा करके, या पुतले जलाकर अपना मत नहीं बताना चाहते। अगर कोई पार्टी इन्हे रुझान चाहती है तो उसे ये दिखाना होगा की वो नए दौर के तौर तरीके अपना रही है।

'पार्टी चुनाव ' करवाने का आव्हान पार्टी के कार्यकार्ता को भी करना होगा, इससे ही उसका भविष्य उज्जवल होगा और मुखाल्या में बैठे वरिष्ठ नेताओं का सर दर्द कम होगा। एक अतिरिक्त फायदा ये भी होगा की बहुत से लोग तो राज्यों की राजधानी एवं दिल्ली तक का ट्रेन का सफर करते हैं वो अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करेंगे और ट्रेन में भीड़ नहीं बढायेंगे।

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